शिक्षा के क्षेत्र में अब तक का सफ़र

Kolkata, West Bengal, India

मेरा नाम आरजू है | में कोलकाता की रहने वाली हूँ | मैंने अपनी स्कूली शिक्षा कोलकाता के ही एक सरकारी स्कूल से की जो एक उर्दू मीडियम स्कूल था | शिक्षा के क्षेत्र में पिछले 2 साल से जुड़ कर काम कर रही हूँ | इस से पहले मैने बच्चों के साथ जीवन कौशल और कम्युनिटी डवलपमेंट पर काम किया था |

शिक्षा के इस क्षेत्र में मेरा सफ़र स्वतालीम संस्था के साथ शुरू हुआ जो पिछले 2 सालो से हरियाणा में कस्तूरबा गाँधी स्कूल के साथ काम कर रही हैं | मैने स्वतालीम के साथ अपना सफ़र हरियाणा के मेवात जिले से शुरू किया | इस पूरी प्रक्रिया में जो एक अहम् चीज़ थी वो यह कि इस नये अनुभव ने मुझे मेरे जीवन में काफी कुछ सीखने का मौका दिया और एक नॉन टीचिंग बैकग्राउंड से होने के बावजूद भी कभी अलग या बाहरी होने जैसा महसूस नहीं हुआ  टीचर्स के साथ काम करते समय मेरी जो एक सब से बड़ी सीख रही वो यह थी कि टीचर्स के साथ काम करने के लिए अलग अलग विषय में जानकारी रखना काफी ज़रूरी है | पढने – पढ़ाने की प्रक्रिया को लेकर समझ बनाना और बच्चे कैसे सीखते है, अलग अलग कंटेंट जैसे शिक्षा , जेंडर , भाषा सीखने- सिखाने के स्तर पर काफी समझ बनाने की ज़रूरत है और अगर इन सभी कंटेंट पर काम किया जाये तो आने वाले समय में यह काफी मददगार साबित होगा और आगे काम करने और समझ बनने में काफी सफलता मिलेगी|  

कस्तूरबा विद्यालय मैने पहेली बार बिहार के किशनगंज जिले में देखा था जो एक residential स्कूल था और यह स्कूल खास तौर पर लड़कियों के लिए बनाया गया था | जो अब समग्र शिक्षा अभियान में समन्वयित कर लिया गया है | मैं पहली बार जब किशनगंज के कस्तूरबा में गयी तो मैने देखा कि यह स्कूल अभिभावकों में बहुत लोकप्रिय है लेकिन अंदर से बहुत ही खस्ता हालत में था| जब हमने वहा के कमरे वग़ैरह देखे तो हमें ऐसा महसूस हुआ कि बाकि सरकारी residential स्कूल के मुकाबले कस्तूरबा पर उतनी ध्यान नहीं दिया जाता है जितना उसे देना चाहिये | बिहार में यह स्कूल कक्षा छठी से लेकर दसवी कक्षा के लिए residential थे और 11th और 12th के बच्चे डे स्कॉलर के तौर पर आते थे | एक चीज़ जो हरियाणा में अंतर देखा वो यह था कि हरियाणा में यह स्कूल छठी कक्षा से दसवी कक्षा के लिए बनाये गए है और छठी से आठवीं कक्षा के लिए इनमें होस्टल भी है |

शुरुवाती दिनों में हमने NCERT की हमारी एक मेंटर के साथ मिलकर मेवात के 5 कस्तूरबा का दौरा किया और वहाँ के टीचर्स , वार्डन और प्रिंसिपल से मुलाकात की | उसी दौरान हमने मेवात के सचिवालय में विजिट किया जहा हमें वहाँ के काम करने के तंत्र  को समझने और जानने का मौका मिला | इस पूरे विजिट के दौरान यह भी समझने का मौका मिला कि जिले के अंदर में शिक्षा विभाग कैसे काम करता है और इसमें सिस्टम कैसे बना हुआ है | इस से पहले मुझे कभी यह नहीं पता था कि District elementary education Officer (DEEO) के अंदर District education officer (DEO) काम करते है | DEO के अंदर District programme co-ordinator (DPC) काम करते है | DPC के अंदर Assistance program Coordinator (APC) reporting करते है | ,APC को Block Education Officer(BEO) अपने कामो की reporting करते है | स्वतालीम में आने से पहले मुझे इस structure की इतनी गहरी जानकारी बिल्कुल भी नहीं थी | इन सब का क्या रोल है और यह कैसे पूर्ण  structure में आते हैं| मेरे लिए यह काफी महत्पूर्ण था क्योंकि इस समझ से मेरे आगे के काम में मुझे काफी मदद मिली और यह समझ बनी कि किस काम के लिए किसकी मदद ली जा सकती है | 

समय के साथ साथ जब हम लोगो ने वहाँ पर अपना base बनाया और वहाँ रहना शुरू किया तो हमें और भी पहलू समझने और जानने को मिले क्योंकि मेवात में base सेट करने के बाद हमारी विजिट काफी ज्यादा होने लगी | Officials के साथ हमारी engagement काफी बढी| शुरुआत में हमारा समय डिस्ट्रिक्ट स्तर से परमिशन निकलने में गया और उस दौरान  systemic स्तर पर भी काफी कुछ समझ आया | official स्तर पर काफी समझ उनके रोल की बनी | APC का रोल , DPC का रोल , DEEO का क्या काम रहता है यह सभी किस तरीके से काम करते है | हमारी विजिट के लिए मेवात जिले के कस्तूरबा स्कूल के APC हमारे साथ थे | सब से पहली विजिट उन्हीं के माध्यम से वहाँ के Secretariat में हुई थी और हमें वहाँ के DEEO सर से मिलवाया था | उन्होंने वहाँ के बारे में एक  जानकारी साझा की जैसे यहाँ की संस्कृति का इतिहास क्या है, यहाँ के लोगो का क्या पेशा है, तथा शिक्षा की क्या स्थिति है | 

जब हमें डिस्ट्रिक्ट स्तर से परमिशन मिली तो हमारा engagement टीचर्स , warden और प्रिसिंपल के साथ  शुरू हुआ जिस के कारण हमारे आपस में काफी अच्छे संबंध बने | टीचर्स के साथ coordinate कर के काम करना मेरे लिए बिलकुल एक नया अनुभव था | यहाँ का पूरा काम शिक्षा और शिक्षा विभाग से जुडा हुआ था | यह काम मेरे लिए अलग इस लिए भी था क्योंकि मैने पहले कभी भी टीचर्स के साथ बैठ कर सत्र नहीं किये थे| बच्चों के साथ मेरा काफी अनुभव था लेकिन टीचर्स के साथ काम करना मेरे लिए एक अलग और नयी चीज़ थी | मेरे अंदर एक झिझक यह भी थी की क्या मैं टीचर्स के साथ काम कर पाऊँगी या नहीं?  इस से पहेले में ने कभी टीचर्स और ऑफिशियल के साथ कभी भी काम नहीं किया था और इसी कारणवश मेरे अंदर एक झिझक और डर सा था| पर समय के साथ साथ जब मैंने स्कूलो में जाना शुरू किया, वहाँ बच्चों के साथ समय बिताना शुरू किया और सब से अहम चीज़, जब मैंने सभी स्कूल में immersion के द्वारा वहाँ रुकी; तब मुझे काफी हौसला मिला और धीरे धीरे मेरे अंदर की यह झिझक टूट गयी क्योंकि  Immersion का एक बड़ा उद्देश्य यह था कि स्कूलों में जाना , वहाँ रुकना , बच्चों के रहन सेहन को देखना समझना , उनके कल्चर को समझना और उनके साथ एक रिश्ता बनाना |Immersion की पूरी प्रक्रिया में टीचर्स , वार्डन, प्रिंसिपल्स और बच्चों के साथ काफी अच्छा रिलेशन बिल्ड हुआ और कई चीज़े समझ में आई जैसे कि स्कूल के क्या नियम हैं, बच्चों ने हॉस्टल में अपनी responsibilities आपस में बंट रखी हैं | हॉस्टल और स्कूलों के अपने नियम होते है, warden और प्रिंसिपल अलग अलग रूप से जुड़े हुए है | यह सभी जानकारी मुझे इस इमर्शन से पहेले कभी नहीं थी | 

Immersion से पहले मेवात, वहाँ के लोगो को लेकर , वहाँ की बच्चियों को लेकर और वहाँ के माहौल को लेकर मेरा एक अलग नजरिया बना हुआ था| वहाँ जाने से पहले मुझे यह बताया गया था कि मेवात जिला एक ऐसा जिला है जो अरावली पहाड़ो से घिरा हुआ है और मुग़ल दौर में यहाँ पर ज्यादा तर लोग पहाड़ो में छुप कर रहते थे और राजाओ की सवारियों को लूटते थे और यह एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से वहाँ के लोगो को आसानी से बाहर नौकरी नहीं मिलती है|लड़कियों के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह काफी शर्मीली हैं और खुले तरीके से अपने विचारो को नहीं रख पाती हैं |  लेकिन immersion के दौरान जब मैंने वहां लड़कियों से बात की उनके साथ रुकी तो यह ज़रूर समझ आया कि उन्हें सही space और अपनापन मिलने से वह काफी खुले तरीके से हर चीजों में बराबर की हिस्सेदारी लेती है | यह चीज़े मुझे immersion के बाद ही समझ आई और अगर मैं उस समय स्कूलों  में विजिट नहीं करती और लडकियों के साथ नहीं रुकती तो यह बात शायद मुझे समझ नहीं आती | इस  पूरी immersion की प्रक्रिया से  मुझे टीचर्स और बच्चो के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाने में मदद मिली| 

आरज़ू शाकिर स्वतालीम से 2019 से जुड़ी हुईं हैं। वो मेवात ज़िले की प्रोग्राम लीड हैं था वहाँ के पाँच KGBV के साथ काम करती हैं। 

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