दीप्ती मैम का सतत प्रयास

दिल्ली शहर में जन्मी दीप्ती मैम पिछले 6 वर्ष से हॉस्टल वार्डन के पद पर के जी बी वी – नूंह में कार्यरत है| उन्हें शहर से दूर शांत परिवेश में रहना अच्छा लगता है | वे अपने जीवन के दो मुख्य उसूल मेहनत और ईमानदारी मानती हैं तथा उसे अपने जीवन में अपनाती हैं | जहां एक और ओर वे अपने हॉस्टल के की बच्चियों के साथ खुल कर मस्ती से जी लेती हैं वही दूसरी ओर, जो भी अनुभव और ज्ञान उनके पास है उसे उन बच्चों के साथ बाँट लेती हैं| उनके मन में हर समय कुछ न कुछ नया सीखने की लालसा निरंतर रहती है | जहां एक और मैम उनके साथ होस्टल में रहने वाली 40 छात्राओं के लिए एक अभिभावक और दोस्त की भूमिका निभाती हैं वही दूसरी ओर वो अपने बेटे के एकल अभिभावक की ज़िम्मेदारी भी पूरी शिद्दत से निभाती हैं | उनका बेटा कक्षा बाहरवी बारहवीं की तैयारी स्वयं अरावली पब्लिक स्कूल में हॉस्टल में रहकर कर रहा है| स्कूल मैम के कस्तूरबा स्कूल से 15-20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है |

दीप्ति मैम का स्वतालीम से परिचय 2019 में  हुआ, पहली दफा उनकी छवि एक शांत एवं सरल व्यवहार वाली महिला के तौर पर उभर कर आयी | जब उन्होंने सत्रों में आना शुरू किया तो उन्होंने बताया कि जब उनकी ड्यूटी पहली बार कस्तूरबा के वार्डन पर लगी थी, तब उनकी एकमात्र ट्रेनिंग हुई थी जिसमे उन्हें नवोदय हॉस्टल में जाकर वहां की कार्य शैली जानने का मौका मिला | उसके बाद नियमित स्तर पर कभी कोई कार्यशाला नही हुई | दीप्ति मैम शुरू से ही कार्यशाला में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती | जब हमने कक्षा में कहानी सुनाने और हॉस्टल में पढने की घंटी वाली गतिविधि पर चर्चा की तो उन्होंने बढ़ चढ़ कर उसमे हिस्सा लिया तथा साथ – साथ अनेक सवाल भी पूछे | वापस जाकर उन्होंने इन गतिविधियों को अपने हॉस्टल में लागू भी किया | अपने काम के प्रति उनका समर्पण इसी बात से झलकता है कि कभी हॉस्टल में आने वाली समस्याओं को लेकर भी उन्होंने हिचक नही दिखाई और उनके हल के विषय में अपनी साथी शिक्षिकाओं और हमसे चर्चा की | चाहे वो किसी बच्ची के घर पर उनके माता – पिता के बीच किसी विवाद के कारण उन पर पड़ने वाला प्रभाव हो या फिर किसी दूसरी बच्ची के घर पर खराब आर्थिक स्थिति के कारण उनका कोविड के समय डिजिटल शिक्षा ना प्राप्त कर पाना | होस्टल की हर बच्ची उनके लिए अपनी बच्ची के समान ही होती | हॉस्टल के कार्य प्रणाली में भी वो बच्चियों को सम्मिलित कर के रखती , जिससे उनमे ज़िम्मेदारी की भावना पनपती और साथ साथ एक आत्मविश्वास का भी संचार होता | वो ख़ास कर उन बच्चियों पर ध्यान देती जो थोडा झिझक कर रहती और अपनी बात खुल कर नही रख पाती |

जब कोविड के कारण सभी बच्चियां घर चली गयी गईं और हमने शिक्षिकाओं से पूछा यदि उनमे से कोई साथी, बच्चियों तक फोन के माध्यम से कहानियाँ पहुंचाने वाले काम में हमारे साथ जुड़ना चाहेंगी तो दीप्ति मैम ने खुशी खुशी हामी भरते हुए कहा कि हमसे ऐसे समय में जो भी प्रयास बन पड़ेगा, हमें करना चाहिए | आज बच्चियों के लिए कहानी चुनने, और उसे रिकॉर्ड करने में पूरा सहयोग करती हैं | क्योंकि ये कहानियाँ दुसरे दूसरे कस्तूरबा में भी जाती हैं तो सभी बच्चियां उन्हें उनके कहानी के किरदार ‘ऋतू मैम’ की आवाज़ से पहचानती हैं | अब तक वो करीब 65-70 कहानियों को 5 कस्तूरबा की 500 बच्चियों तक हफ्ते में दो बार पहुँच रही हैं।  पहुंचा चुकी है | इसके अलावा उन्होंने टीचर्स के लिए आयोजित किये गए डिजिटल शिक्षण के सत्रों में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया | जब भी उनसे सत्रों के विषयों में पूछा जाता हैं तो उनका रवैया हमेशा कुछ नया सीखने को लेकर बहुत उत्साहपूर्ण रहता है और यदि सत्रों में कुछ समझ नहीं आता तो वो अपनी बात रखने से भी नहीं हिचकती | शायद यही सीखने की ललक और अपनी बच्चियों से उनका प्रेम उन्हें हम सब की प्रेरणा बनाता हैं | दीप्ती मैम अपने प्रयासों से शिक्षा के दीप को लगातार प्रज्ज्वलित कर कस्तूरबा की बच्चियों की और हम सबकी प्रेरणा बन रही हैं और यही प्रेरणा हमें अपने काम को और शिद्दत से करने की इच्छाशक्ति देता है|

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