कामकाजी महिलाएं : काम के बीच गरिमा का संघर्ष

मुझे लोगोों के साथ घुलना ममलना, बातचीत करना, नए लोगोों से दोस्ती करना हमेशा से पसोंद है और  इसमें मैने कभी ममहला या पुरुष का भेद नहीों मकया। कॉलेज में, फे लोमशप के दौरान और उसके बाद  मफर काम के मसलमसले में नए नए लोगोों से ममलना जुलना होता रहा है। बहुत लोग हैं मजनसे मैने बहुत  कु छ सीखा है। मेरे घर का माहौल भी हमेशा से ऐसा रहा है। पैरेंट्स ने कभी कहीों जाने से या लोगोों से  ममलने जुलने से मना नहीों मकया। मैने अपने दोस्तोों के साथ देश के अलग अलग महस्से देखे हैं। हमारी  कुछ सहेमलयाों इनका महस्सा कभी नही बन पाई क्ोोंमक उनके घर वालोों को उनके बाहर घूमने जाने से  कडी आपमि थी। 

मपताजी को पैरामलमसस का जब अटैक आया उस समय मैं कक्षा 6 में पढ़ती थी। दोनोों बहनें बहुत छोटी  थी और मेरा छोटा भाई मााँ के पेट में था। तभी से मैं मम्मी के साथ घर के काम में भी हाथ बोंटाने लगी  और ये मसलमसला ग्रेजुएशन और B.Ed. तक चलता रहा। गाोंधी फे लोमशप के मलए मुझे झोंझनूों जाना  पडा। घर से बाहर जाने का मेरा मबल्कु ल मन नहीों था। पर मपताजी के खराब स्वास्थ्य की वजह से  पररवार की आमथिक मजम्मेदारी भी मेरे ऊपर थी। ऐसे में मकसी काम के अवसर को छोडने का ररस्क मैं  नही ले सकती थी। फे लोमशप का अनुभव बहुत अच्छा था। देश के अलग अलग कोनोों से हम सब एक  साल के मलए साथ इकट्ठा थे। उस समय मेरी उम्र 22 साल थी। हम सब लडके लडमकयाों एक दू सरे के  साथ बहुत सहज थे। साथ में स्कू ल जाना, अपने अनुभवोों पर चचाि करना, मौज मस्ती, खाना पीना सब  साथ ही होता था। कभी ये महसूस नहीों हुआ मक हममें से कोई लडका है या लडकी। हम सब बस  दोस्त थे।  

गाोंधी फै लोमशप के बाद मुझे उिरकाशी में नौकरी ममली। मैं वहाों भी चली गई। उिरकाशी शहर से 10 मकलोमीटर दू र एक छोटी सी जगह पर में अके ले रहती थी। आोंटी बहुत अच्छी थीों। मेरा मबल्कु ल मेरी  मम्मी जैसा खयाल रखती थीों। पर एक दो बार ऐसा हुआ की अोंकल मबना दरवाजा खटखटाए या बताए  घर के मबल्कु ल अोंदर आ गए। मैं थोडी असहज हुई इस बात से। मुझे उनकी नीयत पर कोई शक नही  था। पर ये मुझे सही नही लगा। एक मदन मैंने आोंटी जी को कह मदया की अोंकल मबना बताए घर में आ  जाते हैं। ये मुझे मबलकु ल ठीक नही लगता।। उसके बाद वैसा कभी नही हुआ। उनको बात समझ आ  गई थी।  

पहाडोों में यातायात के साधन कम होते हैं। कु छ रास्तोों पर बसें या जीप बहुत कम चलती हैं। ऐसी  जगहोों पर अक्सर मकसी से मलफ्ट माोंगनी पडती थी। ज्यादातर लोग पुरुष ही होते थे। कु छ अच्छे थे  और कु छ मबल्कु ल भी नही। चलती मोटरसाइमकल में अचानक ब्रेक लगाना और ऐसे तरीके से गाडी  चलाना की बैठने वाले व्यक्ति को आपको पकडना पडे ऐसे भी बहुत लोग ममले। जीप में अक्सर ऐसा  होता था की 10 लोगोों की जगह में 15 या उससे ज्यादा लोग होते थे। कई बार आपके बगल में पुरुष भी  होते हैं जो ऐसे ही मौकोों की तलाश में होते हैं। मचपक कर बैठना, हाथ पैर रगडना या कई बार छाती  पर हाथ मार देना और ऐसा मदखाना मक ये जानबूझकर नही मकया गया है, ऐसा बहुत हुआ है। पीररयड  के दौरान मुझे काफी ददि रहता है और मन करता है की आराम ही करों और कु छ भी नही। खासकर  पहले दो मदन तो ऐसा ही रहता है। पर काम तो पीररयड देख कर नही आता। उन मदनोों में भी आना  जाना पडता था। कभी कभी तो इतना गुस्सा आता था मक अब काम छोड दूों। पर घर पररवार का जैसे  ही ध्यान आता था मैं ददि की दवा लेकर काम पर चल देती थी। मम्मी मुझे समझाती थीों मक ऐसे दवा  खाना ठीक नही है। धीरे धीरे मैंने मम्मी को बताना ही बोंद कर मदया।

उिरकाशी से मदल्ली के मलए मसफि एक बस थी जो शाम को मनकलकर सुबह मदल्ली पहुोंचती थी। पूरा  सफर रात का होता था। कई बार पूरी बस में मसफि एक दो ममहलाएों ही होती थीों। हर बार मदल्ली जाना  और वहाों से वापस काम पर आना अपने आप में एक बहुत ही असहज और असुरक्षा के भाव से भरने  वाला होता था। पहाडोों में मुझे उलटी होती थी। कु छ गाडी वाली थोडी देर रोक देते थे, ज्यादातर  डर ाइवर के मलए ये आम बात है। उनका ध्यान अपने मकराए और समय से अडे े पर पहुोंचने पर ही रहता  है। अक्सर उल्टी करते करते हालत खराब हो जाती थी और मैं लगभग मनढाल सी बस पड जाती थी।  इस हालत में भी मैंने लोगोों को सहारा देने के बहाने इधर उधर हाथ लगाते महसूस मकया है।  

मपछले तीन चार सालोों में माताजी के स्वास्थ्य में बहुत मगरावट हुई। तब मुझे लगने लगा मक अब घर के  पास ही रहकर काम करना है। मैं वापस मदल्ली आ गई। अब काम के साथ घर के काम और पररवार  की मजम्मेदारी दोबारा मफर से मेरे ऊपर आ गई। मपछले साल मम्मी की मदल की बीमारी का हम  सबको पता चला। तबसे हम भाई बहनोों ने उनके कु छ भी भारी काम करने पर पाबोंदी लगा दी है।  

मदल्ली की अपनी कहानी है। पर मैं हमेशा से यहाों रही हों, इसमलए थोडा समझ आता है मक मकससे  मकतनी और कै से बात करनी है। ऑटो में या भीड में मकसी ने कोई हरकत की तो उससे कै से मनपटना  है। इस सबके बावजूद भी कई बातें ऐसी हुईों मजससे आत्ममवश्वास डगमगाया। मैं अपने मपताजी के साथ  कु छ काम से बाहर गई थी। हम बस का इोंतजार कर रहे थे। तभी दो लोग बाइक से आ कर हमारे  बगल में रुक गए। एक ने मेरे हाथ से मेरा फोन छीना और दू सरा मेरी छाती का बहुत जोर से दबा कर  वहाों से भाग गए। शायद ये वाकया मेरे मपताजी ने नहीों देखा होता तो मुझे कम दुख होता। फोन तो मफर  भी पैसे से ममल जाता है पर उस घटना के बाद मुझे अपनी नौकरी जारी रखने के मलए अपने पापा से  लगातार बात करनी पडी थी। उनके मन में मेरी असुरक्षा का भाव बहुत लम्बे समय तक रहा। शायद  आज भी है। अब वो बोलते नही हैं इस बारे में।  

ऐसी हरकतें करने वाले ज्यादातर लोग अजनबी ही होते हैं या मकसी तरह आपके काम से जुडे नही  होते हैं। ये ज्यादातर मामले एक बार के होते हैं। पर कु छ मामले इनसे भी ज्यादा गहरे हैं जो पावर,  पोमजशन का गलत इस्तेमाल कर ममहलाओों को परेशान करते हैं।  

मपछले आठ नौ सालोों से मेरा सरकारी और गैर सरकारी दफ्तरोों में काम के मसलमसले में आना जाना  होता रहा है। बहुत से अच्छे लोग ममले हैं। उन्ोोंने गमिजोशी से स्वागत और सम्मान मदया है। पर कु छ  ऐसे लोग भी ममले हैं जो बहुत ही उच्च पदोों पर हैं, पर उनकी हरकतें और सोच मनहायत घमटया है। ऐसे  पुरुष हर जगह ममल जाते हैं। पर ऐसी जगह तुलनात्मक रप से ज्यादा ममलते हैं जहाों की सोच  मपतृसािमक ज्यादा है। हररयाणा ऐसी ही एक जगह है।  

मुझे लगता है हर एक ममहला एक पास ऐसा मडवाइस होता है मजससे वो ये जरर समझ लेती है मक  कोई पुरुष उसको मकस नज़र से देख रहा है। कई बार ऐसे मजला स्तरीय अमधकाररयोों के साथ में मैने  महसूस मकया जैसे वो आपोंको मबल्कु ल ऊपर से नीचे तक स्कै न कर रहे होों। बातें करते वि उनकी  नजरें कहीों और ही होती है। बातें उनकी लच्छे दार होती हैं।  

काम के दौरान फोन नोंबर देने ही पडते हैं। ये काम की आवश्यकता है। पर कभी मकसी ने रात में  ऑनलाइन देखा तो ऐसे मैसेज मक मैडम अभी तक आप सोए नहीों। उस मदन आपसे ममले तो बहुत  अच्छा लगा। अगली मुलाकात मफर कब होगी? गणतोंत्र मदवस पर मैने मशक्षा मवभाग के एक राज्य  स्तरीय अमधकारी को बधाई सोंदेश भेजा। उनका ररप्लाइ आया – thanks a lot beautiful girl ❤.  You are looking sensuous in your DP. उनके मलए शायद मैं मसफि एक लडकी थी। उनको 

हमारे काम धाम से या मकन मुद्ोों के मलए काम कर रहे हैं इसकी कोई मफक्र नहीों थी। वो मसफि फ्लटि  करना चाह रहे थे। हररयाणा के एक मजले के मशक्षा अमधकारी से मैं ममली। उन्ोोंने फोन नोंबर मलया।  रात में मैसेज आया – मैडम जी आज आप आए, मुझे बहुत अच्छा लगा जी आपसे ममलकर। आप जैसा  कहेंगी वैसे ही काम होगा जी। मफर जल्दी आइएगा जी। आपकी आोंखें बहुत अच्छी हैं जी। मैं इतनी  बकवास अपने जाने वालोों की भी नही सुनती। तुरोंत ब्लॉक करती हों। पर कई बार हमारे ऊपर ये दबाव  होता है मक हम ऐसे लोगोों के सोंपकि में रहें क्ोोंमक वो हमारे काम के आगे बढ़ाने में सहायक हो सकते  हैं या काम बोंद भी करवा सकते हैं। ये हमारी च्वाइस नही होती मक हम ऐसे व्यक्ति से बात करना भी  चाहते हैं या नहीों। पर करनी पडती है। कई बार नजरें झकाकर और अपनी गररमा को दरमकनार  करके ।  

कई बार लोग ऐसा कहते हैं मक ममहलाएों काम में पीछे होती हैं और मसफि अपनी अदाएों या जलवे मदखा  कर आगे बढ़ जाती हैं। उनको हमारे रोज के सोंघषों का भान भी नही होता। काश वो अपने घर पररवार  में कभी फु रसत से बैठते और उनके घर की वो ममहलाएों जो काम करती हैं, उनसे इन मुद्ोों पर बात  करते तो उनको सब समझ आ जाता।  

मैं एक साधारण मध्यम वगीय पररवेश से आती हों और मेरे सोंघषि मकसी भी ममहला के सोंघषि के अलग  नही हैं। कु छ के सोंघषि मुझसे थोडे ज्यादा होोंगे, कु छ के शायद थोडे कम होोंगे मैने ऐसे कभी नही  मलखा। आज क्ोों मलख रही हों मुझे पता नही है। मेरा मकसद कोई Me too जैसा मूवमेंट चलाने का  नहीों है। मैने ऐसा कु छ भी नहीों मलखा है जो नया हो या को लोग न जानते होों। बस मुझे ये लगता है मक  हम इन मुद्ोों पर कै से काम करें, कै से एक दू सरे को सक्षम बनाएों मक जब हमारे कस्तूरबा में पढ़ने वाली  लडमकयाों काम करने जाएों, उनके सोंघषि हमसे कु छ कम होों। हमारा समाज ऐसा हो जहाों हम एक दू सरे  का आोंकलन उसके काम के आधार पर कर रहे होों, एक दू सरे के प्रमत सोंवेदनशील होों, हर व्यक्ति की  गररमा सुमनमित हो। ममहलाओों को और उनके काम को भी सम्मान ममले और उनको कमतर न आोंका  जाए।

मनोरमा २०२१ में स्वतालीम में मेवात ज़िले में Teacher Professional Development का काम देखती थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

a
m
Opening hours

Tue – Thu: 09am – 07pm
Fri – Mon: 09am – 05pm

Follow us
fb - ig - tw